वैदिक ग्रन्थों में पर्यावरणीय नैतिकता के प्रतीक देवत्व की संकल्पना
Author : विजय महावर
Abstract :
वैदिक ग्रन्थों में अन्तर्निहित पर्यावरणीय नैतिकता अपने प्रारम्भिक स्वरुप से ही पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखना साथ ही मानव और प्रकृति के पारस्परिक संबंधों के व्यावहारिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करना रहा है।ऋग्वैदिक प्रकृति में देवत्व की संकल्पना ही पर्यावरण नैतिकता को बढ़ावा देती है और पर्यावरण पर प्रभुत्व के स्थान पर ब्रह्मांडीय व्यवस्था ऋत के अंतर्संबंध और सामंजस्य की भावना को संतुलित करती हैं। देवत्व की संकल्पना प्राकृतिक जगत में आन्तरिक अभिव्यक्ति और प्रतीकात्मक के रुप में - पृथ्वी को मां और पिता को आकाश के परिप्रेक्ष्य में श्रद्धा व पवित्र नैतिक प्रबंधन के रुप में की जाती है। पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि पंच तत्वों से निर्मित ब्रह्मांड जो एक मौलिक अंतर्संबंधों को बनाये रखने के लिए प्रेरित करते हैं। ऋग्वेद में ब्रह्मांड के पृथ्वी, आकाश और अंतरिक्षीय देवताओं के संकुल को एक ब्रह्मांडीय परिवार के रुप में दृष्टिगत किया गया हैं। देवत्व ही प्रकृति का सक्रिय संसाधन है। सामाजिक व्यवस्था के लिए प्रकृति का दोहन निषिद्ध है। देवत्व की संकल्पना ही पर्यावरणीय नैतिकता के लिए एक आघ्यात्मिक भावना और मानव कल्याण को आधार प्रदान करती है।
Keywords :
ऋग्वेद, ब्रह्मांड, देवत्व, पर्यावरणीय नैतिकता।