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उत्तर वैदिक कालीन सामाजिक गतिशीलता के प्रवर्तक तत्व

Author : भूपेश प्रताप सिंह और डॉ. प्रदीप कुमार सिंह

Abstract :

ऋग्वैदिक युग में ही आर्यों के पूर्व की ओर प्रसरण की जो प्रक्रिया प्रारम्भ हुई वह उत्तर वैदिक काल में पूर्णता को प्राप्त हो गयी। बदलते भौगोलिक परिवेश एवं आर्य तथा आर्येत्तर जातियों के सम्मिश्रण ने नवीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक संस्थाओं के वृद्धि एवं विकास का मार्ग प्रशस्त किया होगा। उत्पादन अतिरेक के कारण पूर्व में स्थापित वर्गों के साथ-साथ अन्य पेशेवरों के उदय के प्रमाण भी मिलने लगते हैं। ये वर्ण व्यावसायिक गतिविधियों के कारण प्रकाश में आये। इसी तरह धार्मिक विषयों में भी अब वंश परम्परा के स्थान पर ज्ञान को महत्त्व दिया गया। समाज में कठोर वर्ग भेद के बाद भी विवाह संस्कार के माध्यम से अन्तर्वर्गीय समागम किया जा सकता था। प्रस्तुत शोध प्रपत्र में तत्कालीन समाज को गति प्रदान करने वाले कारकों का अध्ययन किया गया है I

Keywords :

समाज, सामाजिक संस्थायें, वर्ग समागम आदि I