आधुनिक मिथिला में पुनर्जागरण का आर्थिक आयाम
Author : डॉ. बबिता कुमारी और आरती राज
Abstract :
कर्नाट-ओइनवारकालीन मिथिला आर्थिक रूप से सम्पन्न था। यहाँ कृषि अर्थव्यवस्था का आधार था, लेकिन कृषि के साथ अनेक प्रकार के व्यवसाय एवं व्यापार-वाणिज्य भी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करते थे। आर्थिक तौर पर सम्पन्न होते हुए भी समाज में आर्थिक असमानता थी। मिथिला में एक ओर जहाँ शासन सत्ता प्राप्त सुविधा सम्पन्न वर्ग था, जो विलासिता में अपना जीवन व्यतीत करता था, तो दूसरी ओर एक ऐसा वर्ग भी था जिसे जीवन यापन करना भी कठिन था। उन्हें दो समय का भोजन एवं तन ढ़ंकने के लिए अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था। प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। राजस्व चुकाना भी किसानों के लिए एक समस्या थी। इस अवधि में दास प्रथा अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गयी थी। लोगों को सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी कर्ज लेना पड़ता था। किसानों को कर्ज चुकाने के लिए अपना बैल भी बेच देना पड़ता था, जिससे कृषि कार्य प्रभावित हो जाता था। इस प्रकार मिथिला में सम्पति का असमान वितरण था, जिसके फलस्वरूप समाज सुविधा सम्पन्न तथा सुविधाहीन दो वर्ग में विभक्त हो गया था। विद्यापति तथा चण्डेश्वर के विवरणांे एवं दूसरे साक्ष्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि समाज के बहुसंख्यक हिस्से की आर्थिक विपन्नता के बावजूद शासक वर्ग की आर्थिक स्थिति काफी खुशहाल थी।
Keywords :
कृषि, अर्थव्यवस्था, मिथिला, कर्नाट एवं ओइनवार, उद्योग, शासक, जनसंख्या, वाणिज्यिक सम्बन्ध, परम्परा।