भोजपुरी और असमीया के लोकगीतों का वर्गीकरण विशेषत: ‘पूर्वोत्तर भारत’ के संदर्भ में
Author : डॉ. जीतू कुमार गुप्ता
Abstract :
लोक साहित्य का अभिप्राय उस साहित्य से है जिसकी रचना लोक करता है। लोक साहित्य ‘लोक’ और ‘साहित्य’ दो शब्दों के मेल से बना है I जिसका अर्थ है- जन सामान्य द्वारा जन सामान्य के लिए रचित, जन सामान्य के बीच प्रचलित साहित्य I लोक साहित्य मौखिक होता है, जिसे लिपिबद्ध नहीं किया जा सकता है I लोक साहित्य का प्रमुख श्रेणी है- ‘लोकगीत’ । भोजपुरी और असमीया साहित्य एवं संस्कृति अपने आप में काफी व्यापक एवं समृद्ध है I मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ ही मानव जाति अपनी भावों की अभिव्यक्ति विभिन्न रुपों से व्यक्त करते आ रहे हैं I जिसमें उनके भाव, हर्ष-विषाद, सुख-दुख, प्रेम-घृणा, पीड़ा-वेदना आदि प्रमुख है I लोक साहित्य का जन्म साधारण जन समुदाय के बीच होता है I समयानुसार पीढ़ी दर पीढ़ी आम जनता द्वारा मौखिक गीत एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे तक संशोधित, परिष्कृत होते हुए जब साहित्य में प्रवेश करती है, वहीं बाद में लोक साहित्य के श्रेणी में अपना स्थान बना लेती है I इस प्रकार लोक साहित्य क्रमश: आगे बढ़ता चला जाता है I और वही लोकगीत के रुप में एक अंग बन जाती है I पूर्वोत्तर भारत नाना जाति-धर्म, सम्प्रदाय की जन्मभूमि रही है I भोजपुरी और असमीया में विभिन्न प्रकार के लोकगीत देखने को मिल जाते हैं I भोजपुरी में जहाँ संस्कारपरक गीत, ऋतुगीत, श्रमगीत, जातिगीत, अन्य गीत आदि का वर्गीकरण किया गया हैं, वहीं असमीया में अनुष्ठानमूलक गीत, कर्मविषयक गीत, आख्यानमूलक, जूना आदि गीतों का वर्गीकरण किया गया है I भोजपुरी और असमीया के वर्गीकरण में व्यक्त लोकजन-जीवन तथा दोनों के आपसी संबंध, समानताएँ-असमांताएँ एवं विशेषताओं को इन लोकगीतों के देखने का प्रयास करेंगे I पूर्वोत्तर भारत के लोग स्वतंत्रता के उपरान्त अपनी जाति, भाषा और संस्कृति के प्रति बहुत जागृत हुए है I हालही के कुछ दशकों से भोजपुरी और असमीया लोकगीतों में भारी कमी देखने को मिल रही है, जिसका मुख्य कारण नई पीढ़ी का अपने नयी संस्कृति के प्रति झुकाव है I
Keywords :
लोक, संस्कार, कर्मविषयक, ऋतु, जूना, श्रम, अनुष्ठानमूलक, आख्यानमूलक आदि I