भारतीय सांस्कृतिक विरासत की अवधारणा का दार्शनिक अध्ययन
Author : रामानन्द कुलदीप और नवोदित कुलदीप
Abstract :
किसी भी देश की सांस्कृतिक विरासत उसकी पहचान होती है, क्योंकि वो उनके मूल्यों, आदर्शों एवं परम्पराओं की संरक्षित निधि होती है। भारतीय सांस्कृतिक विरासत विश्व की सर्वाधिक प्राचीन व समृद्ध परम्परा का उदाहरण है। यह एक जीवन्त परम्परा है जो सहस्त्राब्दियों से चली आ रही है। भारतीय सांस्कृतिक विरासत अपने मूल्यों, आदर्शों, धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, वास्तुकला, संगीत, नृत्य, सामाजिक आचार-विचार, जीवन-शैली और ज्ञान-परम्परा की समृद्धता के कारण विश्व में शाश्वत अस्तित्व रख पाई। भारत ऋषियों, मुनियों की तपोभूमि, द्वैत, अद्वैतवादी दार्शनिक विचारों की जननी, वेद, रामायण, महाभारत, गीता जैसी कालजयी रचनाओं की जन्मदात्री एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘अहिंसा परमो धर्माः’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ जैसे सिद्धान्तों की भारतीय सांस्कृतिक चेतना की आधारशिला रहा है। नालन्दा, तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालय, योग, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, गणित, स्थापत्य भारत की प्राचीन अद्वितीय उपलब्धियाँ रही है। इसलिए आने वाली पीढ़ियों को दिशा देने के लिए इसका संरक्षण व संवर्द्धन आवश्यक है।
Keywords :
मूल्य, धर्म, वास्तुकला, वेद, अहिंसा, योग।