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अंत्येष्टि क्रियाओं से उत्पन्न पर्यावरणीय चुनौतियाँ

Author : डॉ. निशा राज़दान

Abstract :

यह शोध पत्र हिन्दू धर्म के अंत्येष्टि संस्कार से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर आधारित है। हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार जब भी दाह संस्कार किया जाता है तो वो पूरे आदर और सम्मान के साथ किया जाता है। इसी से सभ्यता व असभ्यता का बोध होता है। अलग-अलग शोधकर्ताओं द्वारा हिन्दुओं के दाह संस्कार से पर्यावरण पर पड़ने वाले शोध किए गए है। कुछ तर्क उक्त शोध का समर्थन करते है तथा कुछ विपक्ष में होते है। प्रस्तुत शोध पत्र में मूल्य मूक्त रहते हुए तथ्यों को प्रकट किया गया है। वाराणसी में गंगा की सफाई की परियोजना इस दिशा में एक नई शुरुआत है जिसमें उचित तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। भारत की इस सांस्कृतिक विरासत को प्रदूषण से बचाने की बहुत ही जरूरत है। दाह संस्कार के लिए 500 किलोग्राम और उससे अधिक लकड़ी की आवश्यकता होती है। लकड़ी की यह आवश्यकता वनों के क्षरण से आती है और परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण होता है, जबकि लकड़ी जलाने से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। दाह संस्कार के बाद नदी के पानी में राख के प्रवाह के कारण जल प्रदूषण भी होता है। शवदाह के क्षेत्र में विद्युत शवदाहगृह, गैसीफायर शवदाहगृह, सौर शवदाहगृह आदि जैसे विकास हुए हैं। ये समाधान भारत में इतने लोकप्रिय नहीं हैं क्योंकि यह विकल्प मुखाग्नि और कपालक्रिया जैसे अनुष्ठानों के अवसर प्रदान नहीं करते हैं। हिन्दुओं के अंत्येष्टि संस्कार को पर्यावरण संगत बनाने हेतु धार्मिक शिक्षकों, महंत तथा कर्मकाण्ड करने वाले पंडितों का विधिवत प्रशिक्षण करवा सकते है। हिन्दू धर्म के अंत्येष्टि संस्कार से पर्यावरण प्रदूषण होने के वैज्ञानिक तथ्यों को सहजता से स्पष्ट करने की आवश्यकता है। नई पीढ़ी का समाजीकरण परम्परागत विधि के साथ-साथ वैज्ञानिक और पर्यावरण संरक्षण की विधियों से कर सकते है I

Keywords :

हिन्दू धर्म, अंत्येष्टि संस्कार, पर्यावरण प्रदूषण, शवदाहगृह, पर्यावरण संरक्षण आदि I