प्राचीन भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक व स्वस्तिक का योगिक महत्व
Author : पोरस कुमार महावर
Abstract :
भारतीय इतिहास एवं संस्कृति की विरासत में स्वस्तिक का विशेष महत्व रहा है जो वर्तमान समय में भी शुभ कार्य में सशक्त रूप से उपयोग में है। वैदिक काल से ही स्वस्तिक का महत्व रहा जिनका प्रयोग शुभता तथा सांकेतिक विचारों के आधार पर किया जाता रहा था। जो समय एवं स्थान के साथ धार्मिक प्रतीक के रुप में तथा कुछ समयानुरूप रूप में परिवर्तन होता रहा है। भारतीय संस्कृति में प्रतीक निरन्तरता के प्रेरक रहे है। भारतीय परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले प्रतीक चिन्हों के कारण भी विशेष अर्थपूर्ण हो जाते है। यह समकालीन संस्कृति में प्रतीक चिन्हों के महत्व को इंगित करते है यहाँ सूर्य, चन्द्रमा, कलश, स्वस्तिक, मीन, पर्वत, आदि के आकार-प्रकार का अंकन भारतीय इतिहास में उनके महत्व को रेखांकित करता है यह संस्कृति में प्रचलित मांगलिक प्रतीको के प्रति राजसत्ता की सहज आस्था का प्रमाण है। वर्तमान में लगभग प्रत्येक मांगलिक कार्य में आड़े-तिरछे रेखाओं द्वारा निर्मित विविध कला स्वरूप का प्रयोग किया जाता है जिसमें स्वास्तिक, नवग्रह एवं शुभ चिन्हों का अंकन मंगल कामना हेतु बनाये जाते है। स्वस्तिक न केवल एक प्रतीक है, बल्कि योग साधना में एक शक्तिशाली उपकरण है, जो साधक को ब्रह्मांड की अनंत ऊर्जा से जोड़ता है। योग व अध्यात्म में स्वस्तिक का योगिक महत्व अधिक है।
Keywords :
भारतीय संस्कृति, प्रतीक चिन्ह।