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पिंजर में विभाजन की विभीषिका और शांति का मानवीय स्वर: पीड़ा से मुक्ति की खोज

Author : वंदना कुमावत

Abstract :

अमृता प्रीतम का उपन्यास “पिंजर” भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन की विभीषिका का एक संवेदनशील और सजीव चित्र प्रस्तुत करता है। यह कृति केवल ऐतिहासिक हिंसा का विवरण नहीं, बल्कि मानवता, करुणा और शांति की गहराई तक पहुँचने वाला एक मानवीय दस्तावेज़ है। विभाजन के दौरान स्त्रियों पर हुए अत्याचार, सामाजिक विस्थापन और मानसिक यातना के बीच लेखिका ने यह दिखाया है कि किस प्रकार एक स्त्री — पूरो — अपने आत्मबल, करुणा और सहिष्णुता के माध्यम से पीड़ा से मुक्ति का मार्ग खोजती है।
पिंजर में अमृता प्रीतम ने विभाजन के दौर की साम्प्रदायिक हिंसा को स्त्री दृष्टि से देखा है। पूरो का चरित्र उस समय की भारतीय नारी का प्रतीक बन जाता है जो सामाजिक अस्वीकार्यता, हिंसा और अपमान के बावजूद अपने भीतर की मानवीयता को जीवित रखती है। उसकी चुप्पी विद्रोह में और उसका करुण भाव शांति की साधना में परिवर्तित हो जाता है।
यह शोध इस बात को रेखांकित करता है कि पिंजर में शांति का अर्थ केवल हिंसा की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि आत्मस्वीकृति, क्षमा और करुणा के माध्यम से भीतर की मुक्ति प्राप्त करना है। पूरो की यात्रा पीड़ा से मुक्ति की है — बाहरी संघर्षों से भीतर की शांति की ओर। इस दृष्टि से पिंजर विभाजन की विभीषिका में भी मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रतीक बन जाता है I

Keywords :

विभाजन, स्त्री अस्मिता, करुणा, मानवीयता, शांति, आत्ममुक्ति, पीड़ा आदि I