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रामायण महाकाव्य में त्याग की अवधारणा

Author : सुरेन्द्र कुमार शुक्ल और डॉ. मंशा राम वर्मा

Abstract :

महाकाव्य का ध्येय ही त्याग है, इसका पठन-पाठन, श्रवण करने से ऐसा प्रतीत होता है कि यदि त्याग को अपने जीवन में उतार लिया जाए तो परिवार, समाज, राष्ट्र और देश स्वत: ही उन्नति की तरफ अग्रसर हो जाएगा। इसके साथ-साथ यह महाकाव्य इस बात की भी अभिप्रेरणा देता है कि व्यक्ति में जातिगत हित, कोई औचित्य नहीं रखते है,यह दृष्टांत अनेक स्थान पर दिखाई देता है। अपने व्यक्तिगत हित को छोड़कर, यदि व्यक्ति त्याग की वेदी पर बैठ जाता है तो वह अन्य व्यक्तियों के लिए उदाहरण बन जाता है। यह महाकाव्य हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि त्यागी मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ कर्म है। यह आर्ष ग्रंथ हमें पति-पत्नी के बीच में त्याग की अपेक्षा को बताता है कि यदि पति-पत्नी के बीच में त्याग है तो वह परिवार स्वर्ग के समान दृष्टिगत होगा। यह महाकाव्य जन-जन को यह अभिप्रेरणा देता है कि हमें भी त्याग, परोपकार, स्नेह, बंधुत्व और अपने कर्म से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।

Keywords :

रामायण, महाकाव्य, त्याग, व्यक्तिगत हित