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कथक नृत्य का साहित्यिक अवलोकन

Author : डॉ. जितेश गड़पायले

Abstract :

कवि या रचनाकार द्वारा भाषा, साहित्य एवं व्याकरण के माध्यम से जिन काव्यात्मक वाक्यों की रचना की जाती है, उन्हें कविता कहा जाता है तथा कविता को राग, ताल व लय में निबद्ध कर उन्हें ‘कवित्त’ का स्वरूप प्रदान किया जाता है। कवित्त के साथ अभिनय का समावेश कर इसे नृत्योपयोगी बनाया जाता है। इस प्रकार सामान्य शब्दों का नृत्यात्मक रूप में परिवर्तन एक निश्चित प्रक्रिया के अन्तर्गत की जाती है। नाट्यशास्त्रीय एवं काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में इसे विशेष स्थान दिया गया है। जहाँ नाट्यशास्त्र एवं अभिनयदर्पणादि ग्रंथों में वाचिक अभिनय के अंतर्गत स्थान प्राप्त है, वहीं भावप्रकाशनम् एवं साहित्यदर्पण जैसे काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में सौन्दर्य की उत्पत्ति काव्य से होना बताया गया है। प्राचीन आचार्यों ने काव्य के आधार पर ही सौन्दर्य की कल्पना की है। इस दृष्टि से वाचिक अभिनय के लिए व्याकरण शास्त्र, काव्यशास्त्र, संगीतशास्त्र और छन्दशास्त्र की जानकारी आवश्यक है। इस अभिनय का मुख्य उद्देश्य वाणी के विविध प्रयोग से है। नाट्यशास्त्र में वाणी के विविध प्रयोगों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। नाट्यशास्त्र में यह भी उल्लेख किया गया है, कि अवस्थाओं और स्थितियों के अनुसार हस्तादि आंगिक अभिनयों के अतिरिक्त वाचिक और सात्विक अभिनयों का भी प्रयोग करना चाहिए।
भाव व ताल का संयुक्त रूप कथक नृत्य शैली का एक अनोखा अंग है। यह रचना केवल कथक में ही प्रस्तुत की जाती है, जो मध्यलय में नाचा जाता है। इसमें ताल व अभिनय का सुन्दर संगम होने के साथ-साथ ताल व भाव का संयुक्त रूप एवं भावप्रधान अंग नाचा जाता है। कवित्त इस शब्द की नृत्य रचना का आधार कविता की कथा व छन्द होती है। मात्रिक व वर्णिक/वार्णिक छन्द में रचित कविताओं के छन्द को विभिन्न तालों में नृत्य करने की परम्परा रही है। 
साहित्य में वर्णित आनन्द प्रधान एवं उद्देश्यपरक कविताओं, छन्द या पद्य का प्रयोग कर नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना ही कवित्त कहलाता है। नृत्य में प्रयोगात्मक दृष्टिकोण से उपरोक्त साहित्य के पदों में नृत्य एवं ताल के बोलों का समावेश कर उसे समृद्ध किया जाता है। तत्पश्चात् उन्हीं ताल एवं नृत्य के बोल को मुद्रा विशेष चाल एवं भावाभिनय द्वारा सौन्दर्य वृद्धि कर उसे जन-रंजक बनाया जाता है। यह विशेष रूप से कथक नृत्य और साहित्य का एक अनूठा सजीव सम्बन्ध है।
 

Keywords :

व्याकरण के माध्यम से काव्यात्मक वाक्यो की रचना, शब्दों द्वारा नृत्त्यात्मक परिवर्तन, नाट्य शास्त्रीय एवं काव्यशास्त्रीय ग्रंथ में विशेष स्थान, आंगिक व सात्त्विक अभिनय, विभिन्न प्रकार के मुद्रा, चाल दृष्टिभेद द्वारा प्रस्तुत करना।