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महिला मानवाधिकार की अवधारणा और 21वीं सदी का भारत: एक अध्ययन

Author : डॉ. शिव हर्ष सिंह और कल्पना यादव

Abstract :

मानवाधिकार, मानव प्रजाति में जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य का मूलभूत अधिकार है। इसे किसी व्यक्ति या राष्ट्र द्वारा दिया नहीं जाता और ना ही छीना जा सकता है। यह सार्वभौम है। जैसे-जैसे विकास पथ पर आगे बढ़ रहे हैं, लोगों में मानवाधिकारों के प्रति चेतना आयी है। लोग अपनी सरकारों से इसे सुनिश्चित करने व इस पर कानून बनाने के लिए आवाज उठा रहे हैं। यह अधिकार उस वर्ग के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जो सदियों से शोषित व वंचित रहा है जिसमें महिलाएं भी शामिल है। यह पूरे विश्व में हुआ है जिसमें भारत भी शामिल है। लेकिन समय के साथ हो रहे विकास ने अब महिलाओं को सचेत व जागरुक बना दिया है। अब महिलाएं अपने अधिकारों की रक्षा व गरिमा को लेकर सजग हुई हैं। इस पत्र में हम महिला अधिकारों व कानूनों (राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय दोनों) की चर्चा करेंगे तथा उसके समक्ष आ रही चुनौतियों को जानेंगे।

Keywords :

मानवाधिकार, संयुक्त राष्ट्र, सार्वभौमिक घोषणा पत्र, जेंडर बजटिंग, मीटू