पंचमहाभूत के तत्वों एवं गुरुत्वाकर्षण बल का तुलनात्मक अध्ययन
Author : विद्या और दीपक कुमार
Abstract :
शतपथ ब्राह्मण में व्यष्टि और समष्टि की बात की गई है, चरक संहिता एवं सिद्ध सिद्धांत पद्धति में यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे की बात की गई है, क्रमशः समष्टि अर्थात् बड़ा भाग है व्यष्टी अर्थात् छोटा भाग है एवं चरक संहिता में जो ब्रह्मण्ड में है, वही पिंड अथवा पदार्थ में है अर्थात् हमारा शरीर भी पांच पदार्थों से मिलकर बना हुआ है। आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी ये सभी ब्रह्मांड व पिण्ड दोनों में उपस्थित हैं। दोष, धातु, मल जो शरीर के मूल हैं यही पञ्च महाभूतों को धारण करते हैं। दोषों में वात दोष को प्रमुख माना गया है, वात की गति गुण के कारण शरीर में गति उत्पन्न होती है एवं जीवन का निर्वाह सुचारू रूप से होता रहता है। वेद व वैज्ञानिक मतानुसार आहार मुख से ही ग्रहण किया जाता है वह आहार केवल नीचे की ओर ही गति करता है अन्य जैसे कान, नाक, आंख, त्वचा, अन्न गमन नहीं करते यह कथन ही यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे की पुष्टि करता है। यह तथ्य न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण नियम पर कार्य करता है। यह कार्य भी वायु के द्वारा ही सम्पन्न होता है, वायु के पांच भेद बताये गये हैं जिनमें से अपान वायु है वह भोजन को धारण करने का कार्य सम्पन्न कराती है। हमारे कटि प्रदेश के नीचे शरीर के केंद्र में मूलाधार है, इसे मूलाधार चक्र भी कहते हैं हठयोग इसमें पृथ्वी तत्व की उपस्थिति बताई गई है पृथ्वी तत्व में गुरुत्व होने के कारण हमारे सभी अंग अपने-अपने स्थान पर बने रहते हैं तथा हम इधर-उधर दोलन नहीं करते है इसी कारण भोजन नीचे की ओर गमन करता है, दूसरी ओर हमारी नाभि में सूर्य अग्नि होती है इसे मणिपुर चक्र भी कहते हैं इसमें अग्नि तत्व की प्रधानता होती है विज्ञान के अनुसार कम ऊष्मा युक्त पदार्थों को अधिक ऊष्मा की ओर ले जाता है चूंकि भोजन की ऊष्मा पेट की ऊष्मा से कम होता है। पेट में शरीर के अन्य भागों से अधिक ऊष्मा है इस कारण से इस स्थान पर अन्न का पाक होता है तथा कम द्रव्यमान युक्त पिण्ड भारी द्रव्यमान वाले पिण्ड की ओर गति करता है इसी संदर्भ में ऐतरेय उपनिषद में स्पष्ट किया गया है कि अन्न को धारण अपान वायु ही करता है यह पृथ्वी तत्व का सूक्ष्म रूप है जिस प्रकार धरातल या वायुमंडल हैं उसी प्रकार शरीर के अंदर पृथ्वी व अपान वायु स्थित है पृथ्वी की गुरुत्व शक्ति वस्तु को नीचे की ओर खींचती है इसी गुरुत्व के कारण शरीर में उपस्थित अपान वायु के माध्यम से पृथ्वी तत्व अन्न को बलपूर्वक अपनी ओर ले आता है। इससे सिद्ध होता है कि जो स्थूल रूप में हमें दिखाई देता है वह सूक्ष्म रूप से हमारे शरीर के अंदर विद्यमान है यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे को सिद्ध करता है।
Keywords :
ब्रह्मांड, पिण्ड, पंचभूत, चक्र, व्याधि