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सामाजिक जीवन में संगीत का प्रभाव (ताल वाद्य के संदर्भ में)

Author : डाॅ. जितेश गढ़पायले

Abstract :

समाज की वाणी, हाव-भाव भंगिमाएँ, थिरकन एवं वादन की शाश्वत गाथा ही संगीत है। संगीत हमारी सांस्कृतिक निधि है जिसे सहेजकर रखना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है। संगीत वाचिक परम्परा का सशक्त साधन है जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती आ रही है, ताल वाद्य प्रकृति की देन है। उनका मूल उसे प्रकृति प्रदत्त है। अतः ताल वाद्यों की उत्पत्ति एवं रचना ब्रह्मा की करताल, विष्णु का मृदंग आदि।
यदि हमारा संगीत विलुप्त हो गया तो निश्चित ही जनमानस अपनी यशस्वी परम्परा खो बैठेगा, जिसे पुनः अर्जित करना मानव जाति के लिये असम्भव नहीं तो जटिल अवश्य हो जायेगा। मधुर संगीत की ध्वनियों के श्रवण से शरीर की ग्रंथियाँ प्रभावित होती है जिसके सकारात्मक प्रभाव भी देखे गये है। संगीत एवं नृत्यों में ताल वाद्यों का शेष भारत के संगीत की तरह महत्वपूर्ण स्थान है। मानव जीवन का मूल आधार ‘कर्म’ है जहाँ एक ओर ताल वाद्य जीवन को उमंग और उत्साह से भर देते हैं वहीं दूसरी ओर सामाजिक जन शक्ति को एक सूत्र में पिरोये रखने का यह एक अच्छा माध्यम है। सामाजिक जीवन के मूल्य पूर्वजों की अमूल्य धरोहर है जिसमें जीवन, दर्शन, मिट्टी की महक, प्रकृति का सान्निध्य और सांस्कृतिक मूल्यों के तत्व स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।

Keywords :

सामाजिक जीवन में संगीत, संगीत से व्यक्तित्व विकास, संगीत कला से लाभ, ताल वाद्य का उद्भव एवं प्रकृति से संबंध