वर्तमान समय में उभरते विश्व में छात्र, शिक्षक एवं शिक्षा की भूमिका
Author : डाॅ0 हरिकृष्ण
Abstract :
पहले हमारे देश में लोग सादा जीवन उच्च विचार वाले होते थे, मगर अब जीवन तो सादा रहा नहीं, विचार भी दिन प्रतिदिन गिरते जा रहे है। युग परिवर्तन संसार का नियम है। जैसे-जैसे हमारा प्यारा भारत वर्ष जीवन उपयोगी साधनों एवं उपसाधनों के निर्माण में विकसित होने की दिशा में तेजी से बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे हमारे आचार-विचारों में भी दिन प्रतिदिन विपरीत दिशा में परिवर्तन आ रहा है। विश्व गुरू की सज्ञंा वाला भारत, सोने की चिड़ियां कहलाने वाला भारत सांस्कृतिक उथल-पुथल व मूल्यों के भयानक दौर से गुजर रहा है। आज के वर्तमान समय अधिकांश युवा दूसरों को पीछे धकेल कर बहुत शीघ्रता से आगे बढ़ जाना चाहते है। हथेली पर सरसों जमाने की फिराक में, रातों-रात में ही कुबेर बनने की तीव्र इच्छा युवाओं को अनैतिक तरीके अपनाने को बाध्य करती है। यद्यपि आज व्यक्ति पहले से अधिक समृद्ध, शिक्षित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला है परन्तु वह कहीं अधिक स्वार्थी, लालची और आक्रामक हो गया है। वह अपने आपकों समाज से कटा हुआ पाता है। परिणाम स्वरूप दिन प्रतिदिन व्यक्ति भौतिकता प्रधान एवं आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है। आधुनिक शिक्षा का वास्तविक जीवन या फिर सफल परिवेश से कोई मेेल नहीं बैठता। आज जो शिक्षा दी जा रही है उसमें तकनीक एवं व्यवसाय आदि पर तो जोर दिया जा रहा है परन्तु यह व्यक्ति के आत्मोत्कर्ष व सामाजिक चिन्तन से पूरी तरह कटी हुई है। उसमें प्रकृति व समाज के साथ समरसता व्यक्ति में मानवीय मूल्यों का सम्प्रेषण, चरित्र निर्माण और पर्यावरण का सरंक्षण आदि पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जाता। आज जो शिक्षा दी जा रही है वह हमें मृगमारीचिका की भाॅति मशीन की तरह एक अन्तहीन क्रिया में संलग्न कर देती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति सामाजिक दायित्वों और सरोकारों से करता जा रहा है और धन कमाना और उसका भोगना ही उसके जीवन का लक्ष्य बनता जा रहा है। वह दिषा हीन होकर भटक रहा है। आग की शिक्षा, शिक्षक एवं छात्र की भूमिका पर गालिब की यह पक्तियाॅ एक दम सटीक बैठती है-”धूल लगी थी चेहरे पर, आईना साफ करता रहा“।
Keywords :
सामाजिक चिन्तन, शिक्षा, शिक्षक, छात्र, पाठ्यक्रम, छात्र की भूमिका।