बौद्ध कालीन शिक्षा पद्धति के अंर्तगत स्त्री शिक्षा की स्थिति का अध्ययन
Author : डॉ. नवनीत कुमार सिंह
Abstract :
बौद्ध भिक्षुक जीवन पर्यन्त ब्रह्मचर्य का पालन करते थे तथा वे स्त्रियों के सम्पर्क में नहीं आना चाहते थे, इसलिए बौद्ध काल के प्रारम्भ में स्त्री शिक्षा उपेक्षित ही रही थी। परन्तु बाद में महात्मा बुद्ध ने अपनी विमाता महाप्रजापति गौतमी और अपने प्रिय शिष्य आनन्द के आग्रह पर उनके प्रवेश की अनुमति दे दी। स्त्रियों को भी पुरुषों की भाँति ब्रह्मचर्य और संघ के कठोर नियमों का पालन करना होता था। मठों और विहारों में प्रवेश करने वाली स्त्रियाँ भिक्षुणी कहलाती थी। यहीं से बौद्धकाल में स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ था। स्त्री, पुरुष भिक्षुओं से अलग रहती व शिक्षा ग्रहण करती थी। कहीं कहीं स्त्रियों के लिए अलग से मठों का निर्माण हुआ, परन्तु फिर भी बहुत कम बालिकायें इनमें प्रवेश लेती थी। सचमुच संघ के नियमों का पालन करना, इनके लिए एक कठिन कार्य था। कुछ विद्वान इस युग की कुछ विदुषी महिलाओं गौतमी शीलभट्टारिका, विजयांका, प्रभुदेवी, सुभा, सुमेषा, अनुपमा, रानी नयनिका, रानी प्रभावती गुप्त (राजनीति की विद्वान), सम्राट अशोक की बहन संघमित्रा और सम्राट हर्षवर्धन की बहन के नामों का उल्लेख कर बताने का असफल प्रयास करते हैं कि इस युग में स्त्री शिक्षा की अच्छी व्यवस्था थी। स्त्री शिक्षा के सम्बतन्धी में अल्तेकर ने लिखा है- ‘‘स्त्रियों को संघ में प्रवेश करने हेतु दी गई अनुमति विशेषकर समाज के कुलीन एवं व्यावसायिक वर्गों में स्त्री शिक्षा के निमित्त बहुत अच्छा प्रोत्साहन थी।‘‘ अतः इस काल में अनेक महिलाओं ने अपनी विद्वता से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान किया था परन्तु इस काल में सामान्य स्त्रियों की शिक्षा उपेक्षित रही थी।
Keywords :
बौद्ध कालीन शिक्षा पद्धति, स्त्री शिक्षा, स्थिति।