गुणवत्ता के दृष्टिकोण से अध्यापक शिक्षा
Author : डॉ चंचल कुमार द्विवेदी
Abstract :
रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाला गणित समझना और उससे अपनी गणित संबंधी चिंताओं को निदान कर लेना हमें गणितज्ञ होने का भ्रम नहीं दे सकता। इसी प्रकार शिक्षा की सामान्य जानकारी या परीक्षा प्रणाली पर की जाने वाली आलोचना किसी को शिक्षाविद घोषित नहीं कर सकती। दोनों बातों में स्पष्ट अंतर समझा जाना चाहिए। एक व्यावहारिक रूप से सामान्य समझ का परिणाम है जबकि दूसरी सैद्धांतिक अध्ययन एवं शोध पर आधारित विशेषज्ञता है। शिक्षा के दो विशिष्ट स्वरूप हैं। एक स्वरूप इसका उदार पक्ष है जो समाज विज्ञान के किसी भी विषय की तरह पढ़ा एवं समझा जाता है। इसका दूसरा स्वरूप प्रोफेशनल शिक्षा का हिस्सा है, जिसका कार्य शिक्षा संस्थानों एवं विद्यार्थियों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर शोध को बढ़ावा और शिक्षण-पद्धतियों को अधिक रुचिकर बनाना है। शिक्षा के पहले स्वरूप को बीए तथा एमए (एजुकेशन) के साथ बढ़ावा दिया जाता है या यूं कहें कि उदार अनुशासन के रूप में पढ़ा एवं पढ़ाया जाता है। वहीं गिर इसके दूसरे प्रोफेशनल स्वरूप को बीएड, एमएड, की डीएड या बीएलएड के माध्यम से पहचाना जाता मा है। इसे हम संक्षेप में अध्यापक-शिक्षा कहते हैं जो यूज अध्यापक बनने के लिए वांछित प्रोफेशनल शिक्षा है। शिक्षा के उदार पक्ष और उसके प्रोफेशनल पक्ष का ए अध्ययन क्रमश एमए (एजुकेशन) एवं एमएड से ज जाना जा सकता है। इनके अंतर को समझने के लिए अ आप मनोवैज्ञानिक एवं मनोचिकित्सक का उदाहरण स ले सकते हैं। किसी न किसी रूप में मनोवैज्ञानिक तो के हम सभी हैं-एक अध्यापक के रूप में, माता-पिता के प रूप में, किंतु मनोचिकित्सक केवल सलाह-मशविरा क ही नहीं देता, बल्कि आवश्यक दवा भी देता है।
Keywords :
अध्यापक शिक्षा, शिक्षा व्यवस्था, नई शिक्षा नीति