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श्रीकांत वर्मा के काव्य यात्रा

Author : अमित कुमार जायसवाल और डॉ. ओमप्रकाश दास

Abstract :

श्रीकांत वर्मा ने अपने पहले काव्य-संग्रह की भूमिका में ही कहा कि श्हर युग का प्रगतिशील साहित्य एक नए एवं जीवंत व्यक्तित्व को स्थापित करता है। प्रश्न यही है कि आज की जीवंत कविता में कौन-सा व्यक्तित्व उभर रहा है? आज के जीवंत मूल्य कौन-से हैं? ये मूल्य क्या अकेले एक व्यक्ति के हैं या संपूर्ण समाज के ? ‘‘तारसप्तक’’ का प्रकाशन हो चुका था जिसमें अज्ञेय ने कवि को ‘‘राहों का अन्वेषी’’ कहा था। श्रीकांत वर्मा ने कहा कि सिर्फ राहों का अन्वेषी कह देने से काम नहीं चलता। वे राहें कौन-सी हैं? उनका अन्वेषण कैसे किया जा रहा है? क्या इस खोज के लिए कोई रोशनी जलाई गई है? ‘‘राहों का अन्वेषण करने के लिए-भी किसी मशाल की ज़रूरत होती है। अंधकार के खंडहरों में भटककर ‘‘चिमगादड़’’ के पंखों की फड़फड़ाहट को ही जीवन का एकमात्र चिह्न मान लेना एक और बात है, पथ की खोज करना एक दूसरी बात।’’ देखना कठिन नहीं कि अपनी ही कुंठाओं में घुलते रहने की जगह वे सामाजिक मुक्ति के प्रयासों में शामिल होने को रचनाकार के दायित्व के रूप में चिह्नित करते हैं- पल की खोज का अर्थ आत्मा की मुक्ति नहीं, एक सामाजिक इकाई के रूप में मनुष्य की मुक्ति के मार्ग की खोज से है। इसलिए रचनाकार को ठोस, वास्तविक सामाजिक शक्तियों के साथ एक संबंध भी बनाना पड़ता है।

Keywords :

प्रगतिशील, साहित्य, दायित्व, सामाजिक शक्तियों, अन्वेषी।