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मालती जोशी की कहानियों में नारी की सामाजिक चेतना और विमर्श

Author : बंदना भारद्वाज

Abstract :

मालती जोशी समकालीन हिंदी साहित्य की उन लेखिकाओं में अग्रणी स्थान रखती हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से स्त्री की संवेदनाओं, संघर्षों और सामाजिक परिस्थितियों को गहराई से उकेरा है। यह शोधपत्र उनकी कहानियों में स्त्री विमर्श के विविध आयामों का विश्लेषण करता है। स्त्री विमर्श एक ऐसा विमर्श है जो स्त्री के अस्तित्व, उसकी स्वतंत्रता, अधिकारों और आत्मसम्मान की स्थापना के लिए साहित्यिक और सामाजिक स्तर पर चिंतन करता है। मालती जोशी की कहानियाँ पारंपरिक सामाजिक ढाँचों के भीतर रहकर भी स्त्री के आंतरिक स्वर को मुखर करती हैं। उनकी कहानियों में स्त्री पात्र एक ओर पारिवारिक जिम्मेदारियों से जुड़ी होती हैं, तो दूसरी ओर वे आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में भी लगी रहती हैं। ‘छोटा सा फैसला’, ‘बूंदें’, ‘सिर्फ एक सवाल’, ‘नया मोड़’ जैसी कहानियों में स्त्री पात्रों की सोच, निर्णय लेने की क्षमता, आत्मसंघर्ष और सामाजिक मान्यताओं से टकराने की हिम्मत को लेखिका ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। इन कहानियों में स्त्री केवल भावुक या सहनशील प्राणी नहीं है, बल्कि एक सजग, विचारशील और सशक्त व्यक्ति है जो अपने अस्तित्व के लिए सजग है। यह शोध स्त्री विमर्श को केवल एक वैचारिक आंदोलन न मानकर, उसे समाज के विविध स्तरों पर घटित यथार्थ के रूप में देखने का प्रयास करता है। मालती जोशी की कहानियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि स्त्री विमर्श केवल विद्रोह नहीं, बल्कि चेतना, आत्मसम्मान और मानवीय गरिमा की पुनर्स्थापना का साहित्यिक प्रयास है। यह शोध उनके साहित्य को स्त्री की दृष्टि से पुनः समझने का एक गंभीर प्रयास है I

Keywords :

संयोजी तथा स्थूल वस्तु आदि I