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गोविन्दचन्द्र पाण्डेय की दृष्टि में ऋत-सिद्धान्तः एक अवलोकन

Author : डॉ. रेखा यादव और रामानन्द कुलदीप

Abstract :

ऋत वैदिक साहित्य का एक मौलिक व केन्द्रीय सिद्धान्त है। यह ब्रह्माण्ड की सुव्यवस्था, नैतिक अनुशासन और धर्म के मूल तत्त्व को प्रकट करने वाला सिद्धान्त है। आधुनिक प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों में प्रो॰ गोविन्दचन्द्र पाण्डेय ने ऋत की अवधारणा को विशेष गम्भीरता और दार्शनिक गहराई के साथ विश्लेषित किया है। प्रो॰ पाण्डेय भारतीय इतिहास, संस्कृति और दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान थे। उनके अनुसार, ”ऋत न केवल प्रकृति की नियमितता का बोध कराता है, अपितु यह देवों के आचरण का भी मानक है। यह धर्म का शाश्वत स्वरूप है।“ ऋत, धर्म का पूर्वगामी रूप है, धर्म की अवधारणा ऋत से ही विकसित हुई यह ब्रह्म की अभिव्यक्ति, व्यक्ति के भीतर और ब्रह्माण्ड के बाहर दोनों जगह विद्यमान है। वैदिक-देवता इसके रक्षक हैं। यज्ञ का वैदिक-विधि से सम्पादन ‘ऋत’ को सुदृढ़ करता है।

Keywords :

ऋत, धर्म, वैदिक देवता, यज्ञ, नैतिकता।