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बाल श्रम के दुष्परिणामः एक विश्लेषण

Author : डॉ. देवकी मीणा

Abstract :

बच्चों के समुचित विकास के बिना किसी भी समाज एवं राष्ट्र का भविष्य अंधकार में है, क्योंकि बच्चे ही राष्ट्र के भविष्य की नींव होते हैं। बच्चे के नन्हे हाथों पर ही देश की तकदीर का भी विनिर्माण निर्भर करता है। बाल श्रम एक प्रथा अथवा रोजगार का साधन नहीं है। यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है। जिसके भयानक दुष्परिणाम हमारे समाज को भुगतनें पड़ रहे हैं। भारत में बाल श्रम एक जटिल मुद्दा है। सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक आदि कारणों से बच्चे पढ़ने की उम्र में बाल श्रम से जुड़ जाते हैं। बाल मजदूरी तथा शोषण की निरंतरता देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालती है। बच्चों पर बाल श्रम के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दुष्प्रभाव पड़ते हैं। जो कि पूरे राष्ट्र को प्रभावित करते हैं। बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए ऐसे वातावरण की आवश्यकता है जहां उन्हें शिक्षा तथा प्रशिक्षण के उचित अवसर दिए जाएं ताकि वे भविष्य में समाज तथा देश के जिम्मेदार नागरिक बन सके। परंतु वर्तमान में बच्चों की एक बड़ी संख्या अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित है तथा बाल श्रमिक के रूप में कार्य करने को मजबूर है।

Keywords :

बाल श्रम, विघटन, समाजीकरण, सामाजिक गतिशीलता।