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नरवा, गरुवा, घुरुवा और बाड़ी योजना के क्रियान्वयन में सामुदायिक संस्थानों की भूमिका का अध्ययन-छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा जिले के विशेष सन्दर्भ में

Author : शिव कुमार, डॉ. प्रतिमा सिंह और डॉ. रवीन्द्रनाथ शर्मा

Abstract :

छत्तीसगढ़ राज्य जल, जंगल एवं प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। राज्य में हजारों किस्म की धान, विभिन्न फसलें, फल, साग-सब्जी का उत्पादन होता है। कृषि क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ कृषि विकास एवं कृषक कल्याण दोनों एक दूसरे के दो पहलू है और दोनों का समग्र विकास तभी संभव है जब राज्य में चार चिन्हारी ‘‘नरवा, गरूवा, घुरूवा एवं बाड़ी़’’ का भरपूर विकास हो। इसलिए शासन ने ‘‘सुराजी गाँव योजना’’ की परिकल्पना की है जिसके अंतर्गत नरवा, गरूवा, घुरूवा एवं बाड़ी का विकास कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है। नरवा कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य में उपलब्ध जलश्रोतों का संरक्षण करने से ग्रामीण अंचलों में किसानों को पानी उपलब्धता सुनिश्चित होगी और पशु-पक्षियों का जीवन सुरक्षित होगा। आज के रसायनिक खाद के युग में ‘घुरूवा’ से जैविक खाद का उत्पादन को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है ताकि किसानों को कम लागत से जैविक खाद उपलब्ध हो और भूमि की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाया जा सके। ग्रामीण अंचलों में पशुओं के रख-रखाव तथा देखभाल हेतु सामूहिक व्यवस्था नहीं होने से फसल को नुकसान होता है। फसलों को नुकसान से बचाने तथा पशुओं की देख-रेख, सुधार हेतु गरूवा (पशुधन विकास) कार्यक्रम उद्देशित है। प्रत्येक गाँव में ग्रामीणों के घरों के पीछे भूमि पर साग-सब्जी, फलों का उत्पादन किया जाता है। परन्तु संसाधनों की कमी के कारण ग्रामीणों की बाड़ी विकास कार्यक्रम को प्राथमिकता दी है। जिसके अंतर्गत बाड़ी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन हेतु विभिन्न विभागों द्वारा संचालित योजनाओं के अभिसरण से साग-सब्जी, फलों के उत्पादन का प्रोत्साहन किया जायेगा। इसकी सफलता तभी सुनिश्चित होगी जबकि इस हेतु जिम्मेदार सामुदायिक संगठन तथा अन्य की भागीदारी सुनिश्चित हो। प्रस्तुत शोध पत्र में इसी पर वृहद् रुप से प्रकाश डाला गया है।

Keywords :

नरवा, गरूवा, घुरूवा, मनरेगा, सुराजी गाॅव योजना।