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मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में लोक-संस्कृति और सामाजिक नैतिकता: एक विश्लेषण

Author : मंजू कुमावत

Abstract :

मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ भारतीय ग्रामीण समाज, लोक-आधारित जीवन-दृष्टि, सांस्कृतिक व्यवहार और नैतिक मूल्यों की गहरी अनुभूति प्रस्तुत करती हैं। उनका कथा-संसार न केवल लोक-संस्कृति की अभिव्यक्ति करता है, बल्कि उस सांस्कृतिक संरचना की भी पड़ताल करता है जो सामान्य मनुष्य के जीवन को दिशा देती है। प्रेमचंद की कहानियों में लोक-परंपराएँ, धार्मिक रीति-रिवाज, श्रम-संस्कृति, उत्सव, जातिगत संबंध और सामुदायिक जीवन के विविध रूप प्रामाणिकता के साथ उभरते हैं। इन कहानियों में ग्रामीण जीवन की साँस, उसकी चुनौतियाँ, संघर्ष और आशाएँ यथार्थवादी दृष्टि से चित्रित हैं, जिससे भारतीय समाज की सांस्कृतिक आत्मा का सजीव परिचय मिलता है।
दूसरी ओर, मुंशी प्रेमचंद सामाजिक नैतिकता को मानवीय कर्म, कर्तव्यबोध, न्याय, करुणा और सामूहिक उत्तरदायित्व के रूप में रेखांकित करते हैं। पंचपरमेश्वर, सद्गति, नमक का दरोगा, दो बैलों की कथा और कफन जैसी कहानियाँ स्पष्ट करती हैं कि नैतिकता केवल सैद्धांतिक अवधारणा नहीं, बल्कि लोकजीवन की व्यावहारिक और सामाजिक प्रक्रिया है। यह शोध-पत्र मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में लोक-संस्कृति और सामाजिक नैतिकता की पारस्परिकता का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका साहित्य न सिर्फ यथार्थ का दस्तावेज़ है, बल्कि समाज को अधिक मानवीय, संवेदनशील और नैतिक दिशा प्रदान करने वाला सांस्कृतिक विमर्श भी है I

Keywords :

लोक-संस्कृति, सामाजिक नैतिकता, यथार्थवाद, ग्रामीण समाज, सांस्कृतिक मूल्य, मानवीय संवेदना, प्रेमचंद कथाएँ I