भारतीय उच्च पुरापाषाणिक संस्कृति के खोज का इतिहास
Author : डॉ. विनोद यादव
Abstract :
मानव के प्रारम्भिक काल के विषय में जो भी पुरातात्विक साक्ष्य मिलते हैं, उनमें पाषाण निर्मित उपकरणों की विशेष महत्ता है, क्योंकि मानव अपने जीवन यापन के लिए इन्हीं उपकरणों का प्रयोग करता था और इन्हीं के द्वारा वह आखेट और संग्रह का कार्य भी करता था। इन उपकरणों की प्रधानता के कारण इस काल को पाषाण काल कहा जाता है। इन पाषाण कालीन संस्कृतियों को संास्कृतिक अवस्था एवं स्तरीकरण के आधार पर तीन वर्गो में विभाजित किया गया है-पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल और नव पाषाण काल। पुनः पुरापाषाण काल को स्तरीकरण एवं सांस्कृतिक विभाजन के कारण तीन उपभागों में बाँटा गया है-निम्न पुरापाषाण काल, मध्य पुरापाषाण काल और उच्च पुरापाषाण काल। आधुनिक मानव के उद्भव और तकनीकी विकास से सम्बन्धित प्रारम्भिक काल का नाम उच्च पुरापाषाण काल है। स्तर विन्यास के अनुसार उच्च पुरापाषाण काल मध्य पुरापाषाण काल के बाद तथा मध्य पाषाण काल के पहले आता है। मानव विकास के इतिहास के दृष्टिकोण से उच्च पुरापाषाण काल का विशेष महत्व है। इस काल में मेधावी मानव (होमो सेपियंस सेपियंस) के विकास के साथ ही मानव के सांस्कृतिक विकास का नवीन स्वरूप उभर कर सामने आता है। मध्य पुरापाषाणिक मुस्तीरियन और लेवाॅलोइसियन संस्कृति के पश्चात् आरम्भ होने वाली पाषाण परम्परायें उच्च पुरापाषाण काल के अन्तर्गत सम्मिलित की जाती है। यह काल सांस्कृतिक एवं प्रजातीय दोनों ही दृष्टियों से उल्लेखनीय परिवर्तनों के लिए प्रसिद्ध रहा है। इस काल में मानव के सांस्कृतिक विकास में अपूर्व गतिशीलता आ जाती है। इस काल में मानव समाज का गठन पूर्ववर्ती कालों से अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली लगता है। यह काल मानव के कलात्मक ज्ञान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस काल की तकनीकी प्रगति को देखने से स्पष्ट पता चलता है कि मानव गतिविधियों की विविधता में विशिष्टता का समावेश हो गया था।
Keywords :
पल्लवरम्, सुब्बाराव, बेलन घाटी, भीमबैठका।