राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की विदेश नीतिः चुनौतियाँ एवं सम्भावनाएँ
Author : श्रीमती चंदा शर्मा और प्रो. अमरजीत सिंह
Abstract :
किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में जब दो या दो से अधिक दलों का गठबंधन सरकार बनाता है, तो इसे गठबंधन सरकार कहा जाता है। भारतीय राजनीति का इतिहास इस बात का संकेत देता रहा है कि गठबंधन की सरकार की राष्ट्रनीति एवं पर-राष्ट्र नीति दोनों ही लचर होती है। इसका मुख्य कारण गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के वैचारिक एवं दलगत हितों के मध्य तालमेल का अभाव माना जाता है। चाहे 1989 या 1996 की यूपीए का गठबंधन हो या भारतीय जनता पार्टी के सहयोग एवं सहमति पर आधारित न्यूनतम साझा अभियान से बनी 1998 और 1999 की राजग की सरकार या 2004 एवं 2009 की संप्रग की सरकार हो, विदेश नीति के हितों के साथ अनेक स्थलों पर समझौता करना पड़ा। इसके विपरीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के नेता के रूप में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के निर्णयों ने अन्तर्रास्ट्रीय जगत में भारत की खोई हुई साख को पुनस्र्थापित करने में में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कृष्ण मोहन झा ने अपनी पुस्तक यशस्वी मोदी में लिखा है कि, ‘‘यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर आसीन होने के दो माह के अंदर ही नरेन्द्र मोदी केवल पड़ोसी देशों ही नहीं वल्कि दुनियाँ के सम्पन्न राष्ट्रों की सरकारों को अपनी दबंगई की थोड़ी सी ही झलक दिखाकर इतना प्रभवित करने में सफल हो चुके हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज को अनसुना करने के अपने चिर-परिचित स्वभाव में बदलाव लाने के लिए उन्हें विवश होना ही पड़ेगा। मोदी के प्रति अपनी एलर्जी त्यागने को विवश अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनके प्रधानमन्त्री पद पर आसीन होते ही उन्हें अपने देश आने का न्योता देकर अपने रूख में बदलाव का संदेश पहले ही दे दिया था।’’ आज रा.ज.ग. के गठबंधन की सरकार, अपने संकल्प शक्ति से विश्व के सशक्त राष्ट्रों की कतार में खड़ा है। अपने दसवें वर्ष में प्रवेश कर चुकी यह सरकार आन्तरिक सुशासन एवं विकास पथ पर तो अपना परचम लहरा रही है, साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर भी एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में भारत को देखने का नजरिया पूर्ण रूप से परिवर्तित हो चुका हैै।
Keywords :
विदेश नीति, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, वसुधैव कुटुम्बकम्।