माटी कहे कुम्हार से (श्यामोता के शम्भूदयाल प्रजापत के विशेष संदर्भ में)
Author : डॉ. कृष्णा महावर और आयशा परवीन
Abstract :
राजस्थान अपनी कला संस्कृति व परम्परा के लिए सदैव से अलग पहचान रखता है यहाँ की कला का जितना धार्मिक महत्व है उससे कहीं अधिक कलात्मक महत्व रहा है। इस शोध पत्र को लिखने का मेरा उद्देश्य मुख्यतः तो यह मेरे शोध का अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है दूसरा एक कुम्हार के अर्न्तमन की जिज्ञासा को जानने की इच्छा के चलते ही मुझे इस शोध पत्र को लिखने के लिए प्रेरित किया। मिट्टी ऐसा खनिज पदार्थ है जिससे प्रत्येक व्यक्ति या यू कहे शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो अपने बाल जीवन में इससे परिचित हुए बिना ना रहा हो बाल जीवन की यह कला ना जाने कब एक पौधे से वृक्ष में परिवर्तित हो जाती है। अर्थात जो कला हमारे लिए एक खेल मात्र है वहीं किसी कुम्हार के सम्पूर्ण जीवन का सार होती है राजस्थान के प्रत्येक क्षेत्र में कुम्हार व कुम्हारी कला देखने को मिल जाती है कई स्थान तो वर्तमान में राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बना रहे है परन्तु इन सबके विपरीत कई स्थान ऐसे भी है जहां कार्य तो होता है परन्तु शिक्षा व सरकारी सहायता की कमी के कारण वे स्थान उभर नहीं पाता ना ही ज्यादा से ज्यादा लोग उस स्थान के बारे में जान पाते हैं कुछ ऐसी ही स्थिती है श्यामोता गाँव की जहाँ ब्लेक पॉटरी का कार्य होता है। यह कार्य प्रमुख रूप से शम्भूदयाल प्रजापत करते हैं इनके बनाये बर्तन व सजावटी सामग्री की आर्डर के रूप में बिक्री होती है। सामान्य लोगों को जानकारी कम होने से लोगों की रूचि भी दिखाई नहीं देती। टेराकोटा के इन उत्पादों की बिक्री हमारे देश में कम विदेशों में ज्यादा हो रही है तथा व अपने दैनिक उपयोग में इन बर्तनों का प्रयोग कर रहे है।
वर्तमान में इस शोध पत्र को लिखने का मेरा उद्देश्य श्यामोता के शम्भूदयाल प्रजापत के कार्य से लोगों को परिचित कराना मात्र है।
Keywords :
सवाई माधोपुर, ब्लेक पॉटरी, श्यामोता गाँव, मृण्मूर्तियाँ, शम्भूदयाल प्रजापत।