लैंगिक न्याय का लक्ष्य प्राप्त करने में समान नागरिक संहिता की भूमिका
Author : अवनीश कुमार मिश्रा और डॉ. अजय भूपेंद्र जायसवाल
Abstract :
भारत में महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव का विषय हमेशा से चर्चा का विषय रहा है, जिसकी जड़ें विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार जैसे विषयों को विनियमित करने वाली व्यक्तिगत विधियों में हैं। धार्मिक रीति-रिवाजों के कारण ये विधियाँ प्रायः लैंगिक असमानताओं को जन्म देती हैं, जिसके कारण महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य समुदायों की अपनी-अपनी अलग व्यक्तिगत विधियाँ हैं। व्यक्तिगत विधियाँ धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाती हैं और प्रायः पितृसत्तात्मक मूल्यों पर जोर देती हैं, जिससे घर और समाज में महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिबंध लगता है। समान नागरिक संहिता, सभी नागरिकों पर लागू होने वाली विधियों का एक समूह है जो कि धार्मिक भेदभाव से परे जाकर, लैंगिक पूर्वाग्रहों से निपटने के लिए एक संभावित समाधान के रूप में उभरा है। यह शोधपत्र इस बात की पड़ताल करता है कि भारत में व्यक्तिगत विधियाँ किस तरह असमानताओं को जन्म देती है और इस बात की जांच करता है कि क्या समान नागरिक संहिता इन समस्याओं का प्रभावी समाधान प्रस्तुत कर सकती है।
Keywords :
समान नागरिक संहिता, लैंगिक न्याय, लैंगिक असमानता, धार्मिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत विधियाँ।