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ग्लोबल वार्मिंग-खतरे की घंटी, गरम हो रही है धरती

Author : डॉ. वीरेन्द्र कुमार सैनी

Abstract :

पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में वृद्धि, जो जलवायु परिवर्तत उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त हों, ग्लोबल वार्मिगं कहलाती है।1900 के बाद से वैष्विक औसत सतही तापमान में एक डिग्री से अधिक की वृद्धि हुई है, और 1970 के बाद में वार्मिगं की दर सदी भर के औसतन से लगभग तीन गुना अधिक रही है। वैज्ञानिको को भविष्य में आंषका है कि 2035 तक औसत वैष्विक तापमान 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सिीयस तक बढ सकता है।
ग्लोबल वार्मिगं के गम्भीर परिणाम आ रहे है। पृथ्वी का तापमान बढने के कारण समुद्री जल स्तर भी बढेगा, समुद्री जल अम्लीय हो जायेगा, मछलीयां मर जायेगीं व समुद्र के आसपास के टापु जलमगन हो जायेगें। इसके अतिरिक्त लगातार और तीव्र चरम मौसम की घटनाएं घटित होगी। ग्लोबल वार्मिगं के कारण पारिस्थितिकी तंत्र व जीव-जन्तुओं की प्रजातियों को भी नुकसान पहुंचेगा।
ग्लोबल वार्मिगं को कम करना चुनौतिपूर्ण है लेकिन असम्भव नहीं है। जब सम्पूर्ण विष्व में सयुक्त रुप से एक साथ प्रयास किये जायेंगे तो ग्लोबल वार्मिगं को रोका जा सकता है। इसके लिए व्यक्तियों और सरकारों के इस दिषा में एक साथ कदम उढाने होगें। वैष्विक स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगानी होगी। इन गैसों के स्थान पर अन्य विकल्प की तलाष करनी चाहिए। सार्वजनिक परिवहन का अधिक उपयोग करना चाहिए, और रीसाइक्लिगं को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

Keywords :

ग्लोबल वार्मिगं, जलवायु परिवर्तत, ओजोन परत I