सहजीवनः समय की मांग या कलंक
Author : डॉ. अम्बालाल कटारा
Abstract :
सहजीवन (लिव-इन-रिलेशनशिप) की अवधारणा तथ्यतः, युग्म (क्मिंबजव ।ससपंदबम) है जिसमें एक स्त्री एवं पुरुष (दम्पती) बिना औपचारिक विवाह सम्पन्न किए पति-पत्नी के रूप में साथ रहते हैं। महानगरों में लिव-इन-रिलेशनशिप की शुरूआत शिक्षित और आर्थिक तौर पर सक्षम स्वतंत्र, ऐसे लोगों ने की जो कि विवाह की जकड़न से छुटकारा चाहते थे। युगल जीवन का यह नवीन समरूप, आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण और सूचना क्रान्ति की देन है। सहजीवन को कनाड़ा, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका एवं इग्लैण्ड जैसे पश्चिमी देशों में वैधानिक मान्यता प्राप्त है। जहाँ इसे कॉमन लॉ मैरिज या डीम्प मैरिज या डिफैक्टो रिलेशनशिप या सिविल पार्टनरशीप कहा जाता है।
घरेलू हिंसा के विरूद्ध महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (च्तवजमबजपवद वविउमद तिवउ क्वउमेजपब टपवसमदबम ।बज) में घरेलू नातेदारी के अन्तर्गत पत्नी के साथ-साथ सहजीवन में रहने वाली महिला को शामिल किया गया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों के निर्णय सह-जीवन को वैधानिक रूप से स्वीकार करने की ओर संकत करते हैं। छलकपट एवं धोखाधड़ी से सहजीवन और प्रेमविवाह से जीवन साथी बनाने की साजिश को आजकल ’’लव-जिहाद’’ का नाम दिया जा रहा है। सहजीवन जैसी प्रवृत्तियाँ हमारी परम्परागत सनातन सामाजिक संस्थाओं-विवाह, परिवार, नातेदारी इत्यादि को चुनौती दे रही है।
Keywords :
सह-जीवन, महानगर, वैश्वीकरण, संस्कृति, अधिनियम, समिति, समाज