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डॉ. सम्पूर्णानन्द के विचारानुसार भाषा का माध्यम

Author : डॉ. नवनीत कुमार सिंह

Abstract :

डॉ. सम्पूर्णानन्द ने भाषा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये। उन्होंने अनेक उच्च पदों पर रहकर, समाज व शिक्षा के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्दौर में सन् 1917 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के आठवें अधिवेशन का आयोजन था, जिसका सभापतित्व गाँधी जी ने किया। इस सम्मेलन में वह हिन्दी के प्रबल समर्थक पुरुषोत्तम दास टण्डन के निकट सम्पर्क में आये तथा ‘‘हिन्दी के आन्दोलन तथा पत्रकारिता से निकट सम्बद्ध हो गये। लगभग तीन वर्ष तक वह इन्दौर में कॉलेज की सेवा में रहे और हिन्दी-प्रेम तथा राष्ट्रीयता की भावना का स्फूरण इसी काल में उनके हृदय में हुआ।’’ काशी विद्यापीठ में उनको मर्यादा नामक प्रसिद्ध पत्रिका का सम्पादक बनाया गया। ‘‘यद्यपि यह राजनीति-प्रधान पत्रिका थी किन्तु साहित्य तथा अन्य विषयों पर भी शीर्षस्थ विद्वानों के लेख इसमें प्रकाशित होते थे।’’ स्वतन्त्रता के बाद उत्तर प्रदेश में राजभाषा व माध्यम के प्रश्न पर गम्भीर विवाद प्रारम्भ हो गया। तात्कालिक प्रधानमंत्री पं0 नेहरू हिन्दुस्तानी भाषा के समर्थक थे, जबकि केन्द्रीय शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद उर्दू को सरंक्षण देना चाहते थे। तात्कालिक प्रान्तीय शिक्षामंत्री डॉ. सम्पूर्णानन्द ‘हिन्दी’ के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। उन्होंने इन दोनों के विरोध के बावजूद उ0प्र0 की राजभाषा हिन्दी घोषित की।
सन् 1948 ई0 में लखनऊ में ‘हिन्दुस्तानी सम्मेलन’ हुआ। सम्मेलन में आलोचकों को जवाब देते हुए डॉ. सम्पूर्णानन्द ने कहाः ‘‘भाषा की समस्या बड़ी दुरूह समस्या है। आज कल उर्दू के पक्षपाती हिन्दुस्तानी की आड़ में खड़े हो गये हैं, जो कोई भी इनके भाषणों और लेखों को पढ़ता होगा वह मानेगा कि हिन्दुस्तानी उर्दू का छद्म रूप है।’’ पं0 जवाहरलाल नेहरू के कथन, कि भाषा के सम्बन्ध में अल्पसंख्यकों को दबाना उचित नहीं, उनको उद्धत करते हुए डॉ. सम्पूर्णानन्द ने कहा कि ‘‘हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानने में अल्पसंख्यकों को दबाने का प्रश्न ही नहीं उठता।’’ हाँ ‘‘हिन्दी को अस्वीकार करना बहुसंख्यकों को दबाने के समान है।’’
डॉ. सम्पूर्णानन्द के विचार में हिन्दी हमारी ही संस्कृति, भावनाओं, आकांक्षाओं एवं आदर्शों का प्रतीक है, ‘‘उसी के द्वारा हमारे उज्जवल अतीत् और उज्जवलतर अनागत के समन्वय की यथार्थ अभिव्यक्ति हो सकती है।’’ उन्होंने स्पष्ट कहा कि हिन्दी को मात्र साधारण व्यवहार काव्य और दर्शन के लिए ही प्रयोग नहीं करना है वरन् उसको विज्ञान, अर्थशास्त्र, गणित जैसे शास्त्रों के अध्ययन अध्यापन का भी माध्यम बनना है। डॉ. सम्पूर्णानन्द जैसे समर्थकों के कारण ही हिन्दी भाषा का आस्तित्व बचा हुआ है, वरना विदेशी भाषा कब का इसे कुचलकर आगे निकल गयी होती।

Keywords :

डाॅ0 सम्पूर्णानन्द, भाषा, माध्यम।