वाल्मीकि जाति की वर्तमान समय में बदलती सामाजिक आर्थिक प्रस्थिति के स्वरुप का सामाजिक अध्ययनः ब्लाक बाबल के संदर्भ में
Author : Deepak Kumar
Abstract :
वाल्मीकि जाति के व्यक्ति भारतीय समाज के जातिय सामाजिक संस्तरण में जो की सवसे निचले पायेदान पर आती है वह है अनुसूचित वर्ग के अंतर्गत आने वाली वाल्मीकि जाति, जिसे हम अलग अलग स्थानों पर अलग नामों से जानते हैं, जैस-वाल्मीकि, मेहतर, भंगी, चूहड़ा, हरिजन, लालबेगी, छुआरा, नीरा, हाडी, पाकी, थोटटी, इत्यादि शामिल हैं, और आजकल इन्हें स्वीपर भी कहा जाता। किन्तु ग्रामीण क्षत्रों में इनको जमादार, भंगी, मेहतर, चूहड़ा, आदि और शहरी क्षत्रों में अधिकांशत भंगी और चूहड़ा, आदि जातिगत नामों से इनको जाना और पहचाना जाता है। सर पर मैला ढोने या हाथ से मैला सफाई (मैनुअल स्केवेंजिंग) के अतिरिक्त भी कुछ अन्य कार्य ऐसे हैं, जिन्हें इस जाति के कार्यों से जोड़कर देखा जा सकता है। इन कार्यों में सम्मिलित हैं जैसे कि दृ ओपन ड्रेन एवं सेप्टिक टैंकों की सफाई का काम, रेलवे ट्रेकों पर बिखरे मल दृ मूत्र को साफ करना, सीवर आदि की सफाई करना, विष्ठा (मल) उठाना, घरों, दफ्तरों, नालियों, सड़कों और अस्पतालों की गन्दगी की सफाई भी अधिकांशत भंगी जाति के लोगों के द्वारा ही की जाती है। इस जाति के लोगों के लिए लिए समाज में अलिखित रूप से यह माना जाता है, उपरोक्त कार्य एवम् श्मशान में शवों को दफन करना, अपराधियों को फांसी पर लटकाना, रात में चोरों को पकड़ना, यह सभी इसी जाति में जन्मे लोगों के कार्य हैं। भारत देश में सिर पर मैला ढोने की प्रथा से जुड़े सरकारी आंकडें यह बताते हैं कि मौजूदा समय में तकरीबन डेढ़ लाख लोग देश में इस कार्य को एक पेशे के रूप में कर रहे हैं। इस कार्य में महिलाएं और पुरुष दोनों सम्मिलित हैं। हालांकि देश के कुछ राज्य इससे मुक्त हो चुके ह, (ऐसा सरकारी दावा है) लेकिन गैर दृ सरकारी अनोपचारिक आंकड़ो के अनुसार देश में करीब दस लाख लोग प्रत्यक्ष दृ अप्रत्यक्ष रूप से मैला ढोने की प्रथा से जुड़े हैं, जिसका विशलेषण करने का प्रयास है।
Keywords :
बाल्मिकियों की उत्पत्ति, संस्कृतिकरण, अस्पृश्यकरण, भंगीकरण (असंस्कृतिकरण), बाल्मीकि जातिय आधारित संगठन