समतामूलक और समावेशी शिक्षा, सभी के लिए शिक्षा की ओर एक नयी पहल
Author : डा0 सुधाकर राय
Abstract :
आज शिक्षा में समानता, सहभागिता, स्वतंत्रता, विकास, जागरूकता, सापेक्षता एवं अधिकारों के अनुप्रयोग की दक्षताओं की चर्चाएँ जोरों पर है। वही दूसरी ओर हम राष्ट्र के जीवन की गुणवत्ता को परिलक्षित करने वाले ’’मानव-विकास सूचकांक’’ के लिहाज से बहुत पिछड़े हुए है। भारत में आज भी विकलांगता, आर्थिक-विभेद, जातीय-अत्याचार, जन-जातीय और अनुसूचित जाति के लोगों का शोषण, लिंग-भेद, हाशियाकरण एवं सामाजिक बहिष्कार जैसे भेदभावों एवं उपेक्षाओं का पर्यावरण अपने पुष्ट स्वरूप में विद्यमान है। चूँकि शिक्षा वांछित-विकास का सबसे सबल अभिकरण एवं एजेंट है, इस निर्मित शिक्षा व शिक्षा व्यवस्थाओं का प्राथमिक दायित्व यह है कि वे अपनी कतार में खड़े आखिरी व्यक्तियों का अधिकाधिक कल्याण करें। वर्तमान में शारीरिक क्षमता, अर्थ, वर्ग, लिंग, भाषा एवं संस्कृति व विरासत आदि कारकों के चलते पिछड़ेपन को वरण किये विशिष्ट बालक (भारत के संदर्भ में) शिक्षा की कतार के आखिरी प्रतिनिधि हैं। इन सब शैक्षिक वंचितों की दृष्टि से शिक्षा के हल्कों मेंः ’’पूर्ण-समावेशन की निति’’, वत्र्तमान की सबसे कारगर व सर्वसुलभ दवा है।
Keywords :
समतामूलक. समावेशी शिक्षा. शैक्षिक वातावरण