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आंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का स्वरूपः एक अध्ययन

Author : जयंत राउत

Abstract :

आतंकवादी कार्यो एवं तरीकों से राज्यों की सामाजिक एवं संवैधानिक व्यवस्था तथा राज्यक्षेत्रीय अखण्डता एवं सुरक्षा का भय बना रहता है । फिर भी, आतंकवाद की उपर्युक्त परिभाशा सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाशा नहीं कही जा सकती। बहुत से अवसरों पर किसी राज्य की सरकार किसी विषेश कृत्य को इसलिए आतंकवादी कृत्य मान लेती है क्योंकि यह उसके हित को प्रत्यक्ष रूप सें प्रभावित करने लगती है, तब उस कृत्य को उन लोगों व्दारा न्यायोचित ठहराया जाता है जो कृत्यों को कारित करते हैं और विषेश रूप से उन मामलों में जहाॅं ये कृत्य राश्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए लडने वाले व्यक्तियों व्दारा या उन व्यक्तियों व्दारा कारित किये जाते हैं जो आत्मनिर्णय ;ैमस.िक्मकमतउपदंजपवदद्ध के अधिकार को सुनिष्चित करने के लिये संघर्श करते हों। इस प्रकार से आंतकवाद के विधिमान्य एवं अविधिमान्य प्रयोग तथा सही तरीके से किये गये संघर्श के बीच सीमा रेखा खींचना बहुत कठिन हैं। कोई एक व्यक्ति जो एक राज्य के लिए आतंकवादी है वही दूसरे राज्य के लिए स्वतंत्रता सेनानी होता हैं। उपरोक्त ने आतंकवाद की सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत किसी परिभाशा की रचना को कठिन बना दिया है।

Keywords :

अन्तर्राश्ट्रीय आतंकवाद, राज्यिक आतंकवाद, सुरक्षा परिशद