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महिला सशक्तिकरण विधिक व प्रशासनिक आयामः भारत के विशेष संदर्भ में

Author : डॉ. राजेश कुमार मीणा

Abstract :

सशक्तिकरण से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है, जिसमें महिला आपने जीवन संबंधित समस्त निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हो। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है, जहां महिलाएं आपने परिवार एवं समाज के सभी बधनों से मुक्त हो कर अपने निर्णय की निर्माता स्वयं हो। महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता इसलिये पड़ी कि प्राचीन भारत में लैगिक असमानता थी और पुरुष प्रधान समाज था। महिलाओं के उनके अपने परिवार और समाज द्वारा कई कारणों से उनके साथ लैगिंक भेदभाव किया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा भी हुई। केवल भारत में ही नहीं अपितु दूसरे देशों में भी महिलों के प्रति लैंगिक भेदभाव देखा जा सकता है। भारतीय समाज में वास्तविक रूप से महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं से संबंधित बुरी प्रथाओं को समझना और उन्हें रोकना होगा, जो कि समाज की पितृसत्तात्मक और पुरूष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरूरत है कि महिलाओं के प्रति विद्यमान परम्परागत सोच को बदले तथा इसके साथ-साथ संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों में भी आवश्यक परिवर्तन करना होगा। कानूनी अधिकारों के साथ-साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम इस प्रकार है-प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961, समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976, दहेज रोक अधिनियम 1961. अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956, मेडिकल टर्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम 1987. कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण अधिनियम 2013, बाल विवाह रोकथाम अधिनियम 2006, लिंग परीक्षण तकनीकि (नियंत्रण और गलत इस्तेमाल के रोकथाम)अधिनियम 1994 इत्यादि।

Keywords :

महिलाएँ और समाज, लैगिक असमानता, संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधान।